आत्मा-ज्ञान जे शोकग्रस्त अछि ओकरा अपन भाइ के रूप मे चिन्ह सकैत अछि । एक बेर आत्मा-ज्ञान बहुत नीरस भ ' जाइत अछि, अज्ञानक मोहक कारणेँ ओ भेद करबा मे असमर्थ भ ' जाइत अछि । मन आत्माक दर्पण थिक। मन आ अन्य अंग नीरस भ गेल अछि आ यथार्थ के प्रतिबिंबित नहि करैत अछि । तेँ ई बुझबाक चाही जे भाईचारा रहितो करुणा नहि छल । एहि तरहें ई ज्ञात अछि जे दयालु व्यक्ति वैह होइत अछि जकर स्पष्ट ज्ञान आ आत्मा-दृष्टि होइत छैक |
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