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वल्लालर इतिहास : मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाले मनुष्य का इतिहास |

वल्लालर इतिहास : मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाले मनुष्य का इतिहास |

वल्ललर के इतिहास कियैक पढ़ब ? मृत्यु पर विजय प्राप्त करय वाला आदमी के सच्चा इतिहास। सच्चा वैज्ञानिक जे मनुष्य के बिना मरने जीबय के रास्ता खोजलनि। जे विज्ञान के खोज केलक जे मनुष्य के शरीर के अमर शरीर में बदलि दैत अछि | जे मनुष्यक शरीर केँ ज्ञानक देह मे बदलि देलक। जे हमरा सभकेँ बिना मरने जीबाक बाट बतौलनि। जे भगवान के स्वाभाविक सत्य के अनुभव केलक आ हमरा सब के कहलक जे भगवान के अमर रूप की छै आ ओ कतय छैथ। जे सब अंधविश्वास के दूर क हमरा सबहक ज्ञान स सब किछु पर सवाल ठाढ़ केलक आ सच्चा ज्ञान प्राप्त केलक।

सच्चा वैज्ञानिक नाम : रामालिंगम प्रियजन हुनका जाहि नाम सँ कहैत छथि : वल्ललार । जन्म वर्ष : 1823 शरीर के प्रकाश के शरीर में परिवर्तन वर्ष : 1874 जन्म स्थान : भारत, चिदम्बरम, मरुदुर। उपलब्धि : जे ई खोज केलक जे मनुष्य सेहो भगवानक अवस्था प्राप्त क' सकैत अछि आ मरि नहि सकैत अछि, आ ओहि अवस्था केँ प्राप्त केलक। भारत में तमिलनाडु में चिदम्बरम शहर से बीस किलोमीटर उत्तर में स्थित मरुधुर नामक शहर में रामलिंगम उर्फ ​​वल्ललार के जन्म रविवार, 5 अक्टूबर, 1823 के साँझ 5:54 बजे भेल छल |

वल्ललर के पिता के नाम रमैया, आ माय के नाम चिन्नम्माई | फादर रमैया मरुधुर के लेखाकार आ बच्चा सब के पढ़ाबय वाला शिक्षक छलाह. माँ चिन्नम्माई घरक ख्याल रखलनि आ अपन बच्चा सभक पालन-पोषण केलनि । वल्ललार के पिता रमैया के जन्म के छठम महीना में निधन भ गेलैन। माँ चिन्नम्माई अपन बच्चाक शिक्षा आ भविष्य पर विचार करैत भारतक चेन्नई चलि गेलीह । वल्ललार के बड़का भाई सबपति कांचीपुरम के प्रोफेसर सबपति के अधीन पढ़लनि। महाकाव्य प्रवचन मे निपुण भ गेलाह। प्रवचन मे जा कए जे पाइ कमाइत छल, ओकर उपयोग ओ अपन परिवारक भरण-पोषण मे करैत छल । सबपति स्वयं अपन छोट भाई रामलिंगम के पढ़ा देलखिन। बाद मे हुनका पढ़लनि शिक्षक कांचीपुरम प्रोफेसर सबपतिक अधीन पढ़बा लेल पठौलनि ।

चेन्नई घुरल रामालिंगम प्रायः काण्डसामी मंदिर जाइत छलाह | काण्डकोट्टम मे भगवान मुरुगनक पूजा करैत प्रसन्न छलाह | ओ कम उम्र मे प्रभुक विषय मे गीत रचैत आ गबैत छलाह । स्कूल नै गेल आ ने घरमे रहनिहार रामालिंगमकेँ बड़का भाइ सबपति डाँटि देलखिन। मुदा रामालिंगम अपन जेठ भाइक बात नहि सुनलनि । तेँ सबपति अपन पत्नी पापथी अम्मल केँ कठोर आदेश देलनि जे रामलिंगम केँ भोजन परोसब बंद करू | रामालिंगम अपन प्रिय पैघ भाइक आग्रह पर सहमत होइत घर मे रहि पढ़बाक वचन देलनि । घरक ऊपरका कोठलीमे रामालिंगम रहि गेलाह। भोजनक समय छोड़ि ओ आन समय कोठली मे रहैत छलाह आ भगवानक आराधना मे सक्रिय रूप सँ लागल रहैत छलाह | एक दिन देबाल पर ऐना मे ओ गदगद भ' गेल छलाह आ गीत गबैत छलाह, ई मानैत जे भगवान हुनका प्रकट भ' गेल छथि.

हुनकर जेठ भाई सबपति जे पौराणिक कथा पर व्याख्यान दैत छलाह, अस्वस्थताक कारणेँ जे व्याख्यान लेल सहमत छलाह ताहि मे उपस्थित नहि भ' सकलाह | तेँ ओ अपन छोट भाइ रामालिंगम केँ कहलखिन जे जाहि ठाम व्याख्यान होबय बला छल ओतय जा क' किछु गीत गाबि क' अपन आबय मे असमर्थताक भरपाई करथिन्ह. तदनुसार रामालिंगम ओतय गेलाह। ओहि दिन सबपतिक व्याख्यान सुनबाक लेल भारी संख्या मे लोक जमा भ' गेल छल. रामालिंगम जेठ भाय कहने छलाह तेना किछु गीत गौलनि । एकर बाद ओतय जमा लोक बहुत दिन धरि जिद्द करैत रहलाह जे हुनका आध्यात्मिक व्याख्यान देबाक चाही । तेँ रामालिंगम सेहो मानि गेलाह। व्याख्यान देर राति मे भेल। सब कियो चकित आ प्रशंसा करैत छल। ई हुनकर पहिल व्याख्यान छलनि। ओहि समय मे ओ नौ वर्षक छलाह।

रामलिंगम बारह वर्षक उमेरसँ तिरुवोत्त्रियुरमे पूजा शुरू कएलन्हि। ओ सात इनार वाला इलाका स रोज पैदल तिरुवोत्त्रियुर जाइत छलाह जतय ओ रहैत छलाह | बहुतो के जिद के बाद रामालिंगम सत्ताईस साल के उम्र में विवाह के लेल तैयार भ गेलाह | ओ अपन बहिन उन्नामुलाईक बेटी थानाकोडीसँ विवाह केलक । पति-पत्नी दुनू पारिवारिक जीवन मे नहि जुड़ल छलाह आ भगवानक विचार मे डूबल छलाह । पत्नी थानाकोडीक सहमतिसँ वैवाहिक जीवन एके दिनमे सम्पन्न भऽ जाइत अछि । पत्नीक सहमति सँ वल्ललर अमरत्व प्राप्त करबाक प्रयास जारी रखैत छथि | रामालिंगम ज्ञानक माध्यमे सच्चा भगवान् केँ जानय चाहैत छलाह | अतः 1858 ई. मे चेन्नई छोड़ि अनेक मंदिरक भ्रमण कए चिदम्बरम नामक शहर मे पहुँचलाह | चिदम्बरम मे वल्ललार केँ देखि तिरुवेंगदम नामक करुन्गुझी नामक टोलक प्रशासक हुनका अपन टोल आ घर मे आबि रहबाक आग्रह केलनि । अपन प्रेम सँ बान्हल वल्ललर नौ वर्ष धरि तिरुवेंगदम आवास पर रहलाह ।

असली भगवान हमरऽ माथा में मस्तिष्क में स्थित छै, एक छोटऽ परमाणु के रूप में । ओहि भगवानक प्रकाश एक अरब सूर्यक तेजक बराबर अछि । तेँ आम लोक केँ बुझबाक लेल जे भगवान् जे हमरा सभक भीतर प्रकाश छथि, वल्ललर बाहर एकटा दीप राखि प्रकाशक रूप मे ओकर स्तुति केलनि । सत्य धर्मचलाई के पास प्रकाश के मंदिर के निर्माण वर्ष 1871 में शुरू करलकै, लगभग छह महीना में पूरा होय वाला मंदिर के नाम 'बुद्धि परिषद' रखलकै। ओ वडालूर नामक शहर मे ओहि भगवानक लेल मंदिर बनौलनि जे हमरा लोकनिक मस्तिष्क मे महान ज्ञानक रूप मे प्रकाशक रूप मे निवास करैत छथि | असली भगवान हमरा सबहक माथ मे ज्ञान छथि, आ जे एकरा नहि बुझि सकैत छथि हुनका लेल ओ पृथ्वी पर एकटा मंदिर बनौलनि, ओहि मंदिर मे दीप जरा देलनि, आ कहलनि जे ओहि दीपक केँ भगवान् बुझि ओकर पूजा करू। जखन हम सब अपन विचार के ओहि तरहे केंद्रित करैत छी त हमरा सब के ओहि भगवान के अनुभव होइत अछि जे हमरा सबहक माथ में ज्ञान छथि।

मंगलदिन भोरे आठ बजे मेट्टुकप्पम शहर मे सिद्धि वलकम नामक भवनक सोझाँ झंडा फहराबैत जुटल लोक केँ एकटा लंबा प्रवचन देलनि । ओहि प्रवचन केँ ‘अतिशय शिक्षा’ कहल जाइत छैक | ई प्रवचन मनुष्य के सदिखन सुखी रहबाक लेल मार्गदर्शन करैत अछि | हाथ मे उठय वाला बहुत रास सवाल के जवाब एहि मे देल गेल अछि. प्रवचन हमर अंधविश्वास के तोड़बाक अछि। ओ कहैत छथि जे असली तरीका अछि प्रकृतिक सत्य केँ जेना अछि तेना जानब आ अनुभव करब । एतबे नहि। वल्ललर स्वयं बहुत रास एहन प्रश्न पूछने छथि जे हम सब नहि सोचने छी आ ओकर जवाब सेहो देने छी। ओ प्रश्न निम्नलिखित अछि :.

भगवान् की छथि ? भगवान कतय छथि ? भगवान एक छथि वा अनेक? भगवान् के आराधना कियैक करब? जँ हम सभ भगवानक आराधना नहि करब तँ की होयत? स्वर्ग नामक कोनो वस्तु अछि की? परमेश् वरक आराधना कोना करबाक चाही? भगवान एक छथि वा अनेक? भगवान् के हाथ-पैर छै की? की हम सभ भगवानक लेल किछु क' सकैत छी? भगवान् के खोजै के सबसे आसान तरीका की छै? प्रकृति मे भगवान कतय छथि ? अमर रूप कोन रूप अछि ? हम अपन ज्ञान के कोना सच्चा ज्ञान में बदलब? सवाल कोना पूछब आ ओकर जवाब कोना भेटत? हमरा सभसँ सत्यकेँ की नुकाबैत अछि ? बिना काज केने भगवान स किछु पाबि सकैत छी? की सच्चा भगवान के जानय मे धर्म उपयोगी अछि?

झंडा फहराबै के बाद अगिला आयोजन छल , तमिल मास कार्तिगाई में प्रकाश मनाबैत पावनि के दिन ओ अपन कोठली में सदिखन जरैत दीपा दीप ल क सामने राखि देलखिन | हवेली के। वर्ष 1874 के थाई महीना के 19 तारीख यानी जनवरी में भारतीय खगोल विज्ञान में उल्लेखित पूसम तारा के दिन वल्ललार सबके आशीर्वाद देलखिन | वल्ललर आधा राति मे हवेलीक कोठली मे प्रवेश केलक। हुनकऽ इच्छा के अनुसार हुनकऽ महत्वपूर्ण शिष्य कल्पट्टू ऐया आरू थोझुवुर वेलायुधम न॑ बंद कोठरी के दरवाजा प॑ बाहर स॑ ताला लगाय देलकै ।

ओहि दिन सँ वल्ललर हमरा लोकनिक भौतिक आँखि मे रूपक रूप मे नहि प्रकट भेल अछि , अपितु ज्ञानक निर्माणक लेल दिव्य प्रकाश रहल अछि | चूँकि हमरऽ भौतिक आँखऽ में ज्ञान केरऽ शरीर देखै के शक्ति नै छै, ई लेली वू हमरऽ प्रभु क॑ नै देख॑ सकै छै, जे हमेशा आरू सब जगह छै । चूँकि ज्ञान केरऽ शरीर मनुष्य केरऽ आँखऽ स॑ देखै वाला स्पेक्ट्रम केरऽ तरंग दैर्घ्य स॑ बाहर छै, ई लेली हमरऽ आँख ओकरा नै देख॑ सकै छै । वल्ललर, जेना कि ओकरा बुझल छलैक, पहिने अपन मानव शरीर केँ शुद्ध शरीर मे परिणत कयलनि, फेर ओम नामक ध्वनि शरीर मे, आ फेर शाश्वत ज्ञानक शरीर मे, आ ओ सदिखन हमरा सभक संग रहैत छथि आ अपन कृपा प्रदान करैत छथि |


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